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निबंध-रत्नावली

"बिछुड़ती दुलहन वतन से है जब
खड़े हैं रोम और गला रुक हैं:
कि फिर न आने की है कोई ढब
खड़े हैं रोम और गला रुके हैं;
यह दीनो-दुनिया तुम्हें मुबारक
हमारा दूल्हा हमें सलामत;
पै याद रखना यह आखिरी छबि
खड़े हैं रोम और गला रुके हैं।"

(स्वामी राम) अब प्यारा वीर देव-लोक में रमती देवी के समान अपनी समाधिस्थ बहन के शरार को अपने हाथों में उठाए इस देवी के भाग्यवान् पति के साथ प्रज्वलित अग्नि के इर्द-गिर्द फेरे देता है। इस सोहने नौजवान का दिल भी अजीब भावों से भर गया है। शरीर उसका भी उसके मन से गिर रहा है। उसे एक पवित्रात्मा कन्या का दिल. जान, प्राण सबका सब अभी दान मिलता है। समय की अजीब पवित्रता, माता-पिता, भाई, बहन और सखियों के दिलों की आशाएँ, सत्त्वगुणी संकल्पों का समूह, आए हुए देवी-देवताओं के आशीवाद, अग्नि और मेहँदी के रंग की लाली, कन्या की निरवलम्बता, अनाथता, त्याग, वैराग्य और दिव्य अवस्था आदि ये सबके सब इस नौजवान के दिल पर ऐसा आध्यात्मिक असर करते हैं कि सदा के लिये अपने आपको वह इस देवी के चरणों में अर्पण कर