(७) सच्ची वीरता
सच्चे वीर पुरुष धीर, गंभीर और आजाद होते हैं उनके मन की गंभीरता और शांति समुद्र की तरह विशाल और गहरी, या आकाश की तरह स्थिर और अचल होती है। कभी चंचल नहीं होते । रामायण में वाल्मीकि जी ने कुंभकर्ण की गाढ़ी नींद में वीरता का एक चिह्न दिखलाया है। मच है, सच्चे वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती। वे सत्त्वगुण के क्षीर-समुद्र में ऐसे डूबे रहते हैं कि उनको दुनिया की खबर ही नहीं होती। वे संसार के सच्चे परोपकारी होते हैं। ऐसे लोग दुनिया के तख्ते को अपनी आँख की पलकों से हलचल में डाल देते हैं। जब ये शेर जागकर गजते हैं, तब सदियों तक इनकी आवाज की गूंज सुनाई देती रहती है, और सब आवाजें बंद हो जाती हैं । वीर की चाल की आइट कानों में आती रहती है और कभी मुझे और कभी तुझे मद- मत्त करती है। कभी किसी की और कभी किसी की प्राण- सारंगी वीर के हाथ से बजने लगती है देखो, हरा की कदरा में एक अनाथ, दुनिया से छिपकर, एक अजीब नींद सोता है। जैसे गली में पड़े हुए पत्थर की ओर कोई ध्यान नहीं देता, वैसे ही आम आदमियों की तरह इस अनाथ को कोई न जानता था । एक उदारहृदया धन- ९९