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पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/१४०

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निबंध-रत्नावली

संपन्ना स्त्री की वह नौकरी करता है। उसकी सांसारिक प्रतिष्ठा सिर्फ एक मामूली गुलाम की सी है। पर कोई ऐसा देवी कारण हुआ जिससे संसार में अज्ञात उस गुलाम की बारी आई। उसकी निद्रा खुली। संसार पर मानों हजारों बिजलियाँ गिरी । अरब के रेगिस्तान में बारूद की सी भड़क उठी। उसी वीर की आँखों की ज्वाला इंद्रप्रस्थ से लेकर स्पेन तक प्रज्वलित हुई । उस अज्ञात और गुप्त हरा की कदरा में सोनेवाले ने एक आवाज दी। सारी पृथ्वी भय से काँपने लगी। हाँ, जब पैगंबर मुहम्मद ने “अल्लाहो अकबर" का गीत गाया तब कुल संसार चुप हो गया । और, कुछ देर बाद, प्रकृति उसकी आवाज की गूंज को सब दिशाओं में ले उड़ी। पक्षी "अल्लाह" गाने लगे और मुहम्मद के पैगाम को इधर-उधर ले उड़े। पर्वत उसकी वाणी को सुनकर पिघल पड़े और नदियाँ “अल्लाह, मल्लाह" का अलाप करती हुई पर्वतों से निकल पड़ी। जो लोग उसके सामने आए वे उसके दास बन गए। चंद्र और सूर्य ने बारी बारी से उठकर सलाम किया। उस वीर का बल देखिए कि सदियों के बाद भी संसार के लोगों का बहुत सा हिस्सा उसके पवित्र नाम पर जीता है और अपने छोटे से जीवन को अति तुच्छ समझ- कर उस अनदेखे और अज्ञात पुरुष के, केवल सुने-सुनाए, नाम पर कुर्वान हो जाना अपने जीवन का सबसे उत्तम फल समझता है।