पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/१४३

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सच्ची वीरता शम्स तबरेज को भी ऐसा ही काफिर समझकर बादशाह ने हुक्म दिया कि इसकी खाल उतार दो। शम्स ने खाल उतारी और बादशाह को, दवाजे पर आए हुए कुत्ते की तरह भिखारी समझकर, वह खाल खाने के लिये दे दी। देकर वह अपनी यह गजल बराबर गाता रहा-'भीख माँगनेवाला तेरे दर्वाजे पर पाया है; ऐ शाहेदिल ! कुछ इसको दे दे ।" खाल उतारकर फेंक दी ! वाह रे सत्पुरुष ! भगवान् शंकर जब गुजरात की तरफ यात्रा कर रहे थे तब एक कापालिक हाथ जोड़े सामने आकर खड़ा हुआ। भगवान् ने कहा-"माँग, क्या माँगता है ?" उसने कहा- "हे भगवन् आजकल के राजा बड़े कंगाल हैं। उनसे अब हमें दान नहीं मिलता। आप ब्रह्मज्ञानी और सबसे बड़े दानी हैं। इसलिये मैं आपके पास आया हूँ। आप कृपा करके मुझे अपना सिर दान करें जिसकी भेंट चढ़ाकर मैं अपनी देवी को प्रसन्न करूँगा और अपना यज्ञ पूरा करूंगा।" भगवान् ने मौज में आकर कहा "अच्छा कल, यह सिर उतारकर ले जाना और काम सिद्ध कर लेना।" एक दफे दो वीर पुरुष अकबर के दर्बार में आए। वे लोग रोजगार की तालाश में थे। अकबर ने कहा-"अपनी अपनी वीरता का सुबूत दो।" बादशाह ने कैसी मूर्खना की। वीरता का मला वे क्या सुबूत देते ? परंतु दोनों ने तलवारें निकाल जी और एक दूसरे के सामने कर उनकी तेज धार पर दौड़