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पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/१५५

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सच्ची वीरता ११५ पहले वह ओसाका नामक शहर के बड़े बड़े धनाढ्य और भद्र पुरुषों के पास गया और उनसे मदद माँगी। इन भलमानस ने वादा ना किया, पर उसे पूरा न किया। ओशिया फिर उनके पास कभी न गया। उसने बादशाह के वजीरों को पत्र लिखे कि इन किसानों को मदद देनी चाहिए। परंतु बहुत दिन गुजर जाने पर भी जवाब न आया। ओशिया ने अपने कपड़े और किताब नीलाम कर दी। जो कुछ मिला, मुट्ठी भर- कर उन आदमियों की तरफ फेंक दिया। भला इससे क्या हो सकता था ? परंतु ओशिया का दिल इससे पूर्ण शिव रूप हा गया। यहाँ इतना जिक्र कर देना काफी होगा कि जापान के लोग अपने बादशाह के पिता की तरह पूजते हैं। उनके हृदय की यह एक वासना है। एसी कौम के हजारों आदमी इस वीर के पास जमा हैं। ओशिया ने कहा-“सब लोग हाथ में बाँस लेकर तैयार हो जाओ और बगावत का झडा खड़ा कर दो।" कोई भी चूँ वा चरा न कर सका। बगावत का झंडा खड़ा हो गया। प्रोशियो एक बाँस पकड़कर सबके आगे किमोटो जाकर बादशाह के किले पर हमला करने के लिये चला। इस फकीर जनरल की फौज की चाल को कौन रोक सकता था ? जब शाही किले के सरदार ने देखा तब उसने रिपोर्ट की और आज्ञा माँगी कि ओशिया और उसको बागी फौज पर बंदूको की बाढ़ छोड़ी जाय ? हुक्म हुआ कि “नहीं, श्रोशियो तो कुदरत के सब्ज वर्का को पढनेवाला है। वह किसी खास