पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/१५९

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(८) आचरण की सभ्यता विद्या, कला, कविता. माहित्य, धन और राजत्व से भी आचरण की सभ्यता अधिक ज्योतिष्मती है । अचरण की सभ्यता का प्राप्त करके एक कंगान आदमी राजाओं के दिलों पर भी अपना प्रभुत्व जमा सकता है। इस सभ्यता के दर्शन से कला, माहित्य और संगीत का अद्भुत सिद्धि प्राप्त होती है। राग अधिक मृदु हो जाता है, विद्या का तीसरा शिव-नत्र ग्बुल जाता है, चित्र-कला मौन राग अलापने लग जाती है, वक्ता चुप हो जाता है, लेखक की लेखनी थम जाती है, मूर्ति बनान- वाले के सामने नए कपोल, नए नयन और नवीन छवि का दृश्य उपस्थित हो जाता है। आचरण की सभ्यतामय भाषा सदा मौन रहती है। इस भाषा का निघंटु शुद्ध श्वेत पत्रोंवाला है। इसमें नाम मात्र के लिये भी शब्द नहीं। यह सभ्याचरण नाद करता हुआ भी मौन है, व्याख्यान देता हुआ भी व्याख्यान के पीछे छिपा है, राग गाता हुआ भी राग के सुर के भीतर पड़ा है। मृदु वचनों की मिठाम में आचरण की सभ्यता मौन रूप से ग्वुली हुई है । नम्रता, दया, प्रेम और उदारता सब के सब सभ्या- चरण की भाषा के मौन व्याख्यान हैं। मनुष्य के जीवन पर ११९