पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/१९६

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१५६ निबंध-रत्नावली हाथ में और भाई लालो की मोटी रोटी दूसरे हाथ में लेकर दोनों को जो दबाया तो एक से लोहू टपका और दूसरी से दूध की धारा निकली । बाबा नानक का यही उपदेश हुआ। जो धारा भाई लालो की मोटी रोटी से निकली थी वही समाज का पालन करनेवाली दूध की धारा है यही धारा शिवजी की जटा से और यही धारा मजदूरों की उंगलियों से निकलती है। मजदूरी करने से हृदय पवित्र होता है; संकल्प दिव्य लोकांतर में विचरते हैं। हाथ को मजदूरी ही से सच्चे ऐश्वर्य की उन्नति होती है । जापान में मैंने कन्याओं और स्त्रियों को ऐसी कलावती देखा है कि वे रेशम के छोटे छोटे टुकड़ों को अपनी दस्तकारी की बदौलत हजारों की कीमत का बना देती हैं, नाना प्रकार के प्राकृतिक पदार्थो और दृश्यों को अपनी सुई से कपड़े के ऊपर अंकित कर देती हैं । जापान-निवासी कागज, लकड़ी और पत्थर की बड़ी अच्छी मूर्तियां बनाते हैं। करोड़ों रुपए के हाथ के बने हुए जापानी खिलौने विदेशों में बिकते हैं। हाथ की बनी हुई जापानी चीजें मशीन से बनी हुई चीजों को मात करती हैं। संसार के सब बाजारों में उनकी बड़ी माँग रहती है। पश्चिमी देशों के लोग हाथ की बनी हुई जापान की अद्भुत वस्तुओं पर जान देते हैं। एक जापानी तत्त्वज्ञानी का कथन है कि हमारी दस करोड़ उँगलियाँ सारे काम करती हैं । इन उँगलियों ही के बल से, संभव है हम जगत् को जीत लें। (“We shall beat the world with