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पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/१९९

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मजदूरी और प्रेम १५९ 1 पश्चिमी सभ्यता का एक नया आदर्श पश्चिमी सभ्यता मुख मोड़ रही है। वह एक नया आदर्श देख रही है। अब उसकी चाल बदलने लगी है। वह कलों की पूजा को छोड़कर मनुष्यों की पूजा को अपना आदर्श बना रही है। इस आदर्श के दर्शानेवाले देवता रस्किन और टाल्सटाय आदि हैं। पाश्चात्य देशों में नया प्रभात होनेवाला है । वहाँ के गंभीर विचार- वाले लोग इस प्रभात का स्वागत करने के लिए उठ खड़े हुए हैं। प्रभात होने के पूर्व ही उसका अनुभव कर लेनेवाले पक्षियों की तरह इन महात्माओं को इस नए प्रभात का पूर्व ज्ञान हुआ है भौर, हो क्यों न ? इंजनों के पहिये के नीचे दबकर वहाँवालों के भाई बहन-नहीं नहीं, उनकी सारी जाति पिस गई। उनके जीवन के धुरे टूट गए, उनका समस्त धन घरों से निकलकर एक ही दो स्थानों में एकत्र हो गया । साधारण लोग मर रहे हैं, मजदूरों के हाथ-पाँव फट रहे हैं, लहू चल रहा है ! सरदी से ठिठुर रहे हैं। एक तरफ दरिद्रता का अखंड राज्य है, दूसरी तरफ अमीरी का चरम दृश्य । परंतु अमीरी भी मानसिक दुःखों से विमदित है। मशीने बनाई तो गई थीं मनुष्यों का पेट भरने के लिये-मजदूरों को सुख देने के लिये-परंतु वे काली काली मशीने ही काली बनकर उन्हीं मनुष्यों का भक्षण कर जाने के लिये मुख खोल रही हैं। प्रभात होने पर ये काली काली बलाएँ दूर होंगी। मनुष्य के सौभाग्य का सूर्योदय होगा।