पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/२००

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१६० निबंध-रत्नावली शोक का विषय है कि हमारे और अन्य पूर्वी देशों में लोगों को मजदूरी से तो लेशमात्र भी प्रेम नहीं, पर वे तैयारी कर रहे हैं पूर्वोक्त काली मशीनों का आलिंगन करने की। पश्चिमवालों के तो ये गले पड़ी हुई बहती नदी की काली कमली हो रही हैं । वे छोड़ना चाहते हैं, परंतु काली कमली उन्हें नहीं छोड़ती। देखेगे, पूर्ववाले इस कमली को छाती से लगाकर कितना आनंद अनुभव करते हैं। यदि हममें से हर आदमी अपनी दस उँगलियों की सहायता से साहसपूर्वक अच्छी तरह काम करे तो हमी, मशीनों की कृपा से बढ़े हुए परिश्रमवालों को, वाणिज्य के जातीय संग्राम में सहज ही पछाड़ सकते हैं । सूर्य तो सदा पूर्व ही से पश्चिम की ओर जाता है। पर, आयो पश्चिम में आनेवाली सभ्यता के नए प्रभात को हम पूर्व से भेजें। इंजनों की वह मजदूरी किस काम को जो बच्चों, खियों और कारीगरों को ही भूखा नंगा रखती है, और केवल सोने, चाँदी, लोहे आदि धातुओं का ही पालन करती है। पश्चिम को विदित हो चुका है कि इनसे मनुष्य का दुःख दिन पर दिन बढ़ता है । भारतवर्ष जैसे दरिद्र देश में मनुष्य के हाथों की मजदूरी के बदले कलों से काम लेना काल का डका बजाना होगा। दरिद्र प्रजा और भी दरिद्र होकर मर जायगी। चेतन से चेतन की वृद्धि होती है। मनुष्य को तो मनुष्य ही सुख दे सकता है। परस्पर की निष्कपट सेवा ही से का कल्याण हो सकता है। धन एकत्र करना तो मनुष्य-जाति मनुष्य जाति