पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/२१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७८
निबध-रत्नावली

(२१) सफेद ऊन के कोट पहने ये छोटी छोटी भेड़ें इस टप्पर में दर्शन दे रही हैं। कोई खड़ी, कोई बैठी और कोई फलाँग मार रही है।

(२२) क्या सुहावना अरबी घोड़ा खड़ा है, काठी-लगाम से सजा हुआ है। सवार लड़ाई में शहीद हो गया है। यह घरवाले संबंधियों को खबर करने अकेला ही चला आया है। दुलदुले वेयार सामने खड़ा है। कौन इस अनाथ घोड़े को देख नहीं रो उठेगा। पाठक! क्या हृदयगम्य उद्देश को लिए जगत में एक ही अपनी मिसाल आ खड़ा है। मुख नीचा किए हुए किसी दर्द से पीड़ित हो रहा है।

(२३) मेवाड़ देश की महारानी, भारतवर्ष की जान, मीराबाई राज छोड़ कर रज पर बैठी है। उसके दिव्य नेत्र खुले हैं। साधारण जगत् कुछ भी नहीं देख रहा है। इतने में राजाजी ने मस्त हाथी दौड़ाया कि इस देवी को कुचल डाले। मैं पास बैठा हूँ। क्या देखता हूँ कि देवी के पास आ हाथी की मस्ती खुल गई। उनके चरणों में नमस्कार की और चल दिया। जब कभी मेरा हृदय विक्षिप्त होता है, मैं यहाँ आकर इस देवी के चरणों की रज को ले अपने मस्तक और नाभि, दिल और चक्षु और सिर में लगा उन्हें पवित्र करता हूँ।

(२४) राजाओं के राज्य, राजधानियों की राजधानियाँ नष्ट हो गईं। वे तख्त जिस पर बैठते थे तख्ते हो गए, मिट्टी में मिल गए। परंतु समय के प्रभाव को देखिए। सारे भारतवर्ष की