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निबंध-रत्नावली

यज्ञों और वेदों के योग्य बना लें-तब तक ही जब तक कि दूसरे कोई राक्षस या अनार्य उसे भी रहने के अयोग्य न कर दें-पर यह नहीं कि डटकर सामने खड़े हो जावे और अनार्यो की बाढ़ को रोके । पुराने से पुराने आर्यों की अपने भाई असुरों से अनबन हुई । असुर असुरिया में रहना चाहते थे, आर्य सप्त- सिंधुओं को आर्यावर्त बनाना चाहते थे। आगे चल दिए। पीछे वे दबाते आए। विष्ण ने अग्नि, यज्ञपात्र और अणि रखने के लिये तीन गाड़ियां बनाई। उसकी पत्नी ने उनके पहियों की चूल को घी से आँज दिया। ऊखल, मूसल और सोम कूटने के पत्थरों तक को साथ लिए हुए यह 'कारवाँ' मूजवत हिंदुकुश के एक मात्र दर्रे खैबर में होकर सिंधु की घाटी में उतरा। पीछे से श्वान, भ्राज, अम्भारि, बम्भागि, हस्त, सुहस्त, कृशन, शंड, मकै मारते चले आते थे। वज्र की मार से पिछलो गाड़ी भी आधी टूट गई, पर तीन लंबी डग भरनेवाले विष्ण ने पीछे फिरकर नहीं देखा और न जमकर मैदान लिया। पितृभूमि अपने भ्रातृव्यों के पास छोड़ पाए और यहाँ 'भ्रातृव्यस्त वधाय'. 'सजातानां मध्यमेष्ट्याय' देवताओं का आहुति देने लगे। चलो, जम गए। जहाँ जहाँ रास्ते में टिके थे वहाँ वहाँ यूप खड़े हो गए। यहाँ की सुजला सुफला शस्यश्यामला भूमि में ये बुलबुलें चहकने लगीं। पर ईरान के अंगूरों और गुलों का, यानी मूजवत् पहाड़ को सोमलता का चसका पड़ा हुआ था। लेने जाते तो वे पुराने गधर्व मारने