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निबंध-रत्नावली

वाले भी सफेद बूरा बनाने के लिये वही उपाय करते हैं । वह मैली खाँड खाने लगेगा । कुछ दिन ठहरकर कहिए कि सस्ती जावा या मोरस की खाँड़ मैली करके बिक रही है | वह गुड़ पर उतर आवेगा । फिर कहिए कि गुड़ के शीरे में भी सस्ती मोरिस के मैल का मेल है । वह गुड़ छोड़कर पितरों की तरह शहद ( मधु ) खाने लगेगा, या मीठा ही खाना छोड़ देगा । वह सिर निकालकर यह न देखेगा कि सात सेर की खाँड छोड़कर डेढ़ सेर की कब तक खाई जायगी । यह न सोचेगा कि बिना मीठे कब तक रहा जायगा । यह नहीं देखेगा कि उसकी सी मतिवाले शरबत न पीनेवालों की संख्या घटती घटती दहाइयों और इकाइयों पर आ जा रही है । वह यह नहीं विचारेगा कि बन्नू से कलकत्ते तक डाकगाड़ी में यात्रा करनेवाला जून के महीने में मुलसते हुए कंठ को बरफ से ठंडा बिना किए रह नहीं सकता | उसका कछुआपन कछुआ-भगवान् की तरह पीठ पर मंदराचल की मथनी चलाकर समुद्र से नए नए रत्न निकालने के लिये नहीं है । उसका कछुआपन ढाल के भीतर और भी सिकुड़कर घुस जाने के लिये है।

किसी बात का टोटा होने पर उसे पूरा करने की इच्छा होती है, दु:ख होने पर उसे मिटाना चाहते हैं । यह स्वभाव है । अपनी अपनी समझ है। संसार में त्रिविध दुःख दिखाई पड़ने लगे। उन्हें मिटाने के लिए उपाय भी किए जाने लगे। 'दृष्ट' उपाय हुए । उनसे संतोष न हुआ तो सुने सुनाए