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पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/२५५

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मारेसि माहि कुठार

कश्मीर के पुस्तकालय में कालिदासरचित विक्रम महाकान्य में हिंदुपतिः पाल्यताम्' पद प्रथम श्लोक में मानना पड़ता है। इसके लिये महाराज कश्मीर का पुस्तकालय की कल्पना कि जिसका सूचीपत्र डाक्टर स्टाइन के बनाया हो, वहाँ पर कालिदास के कल्पित काव्य की कल्पना, कालिदास के विक्रम संवत् चलानेवाले विक्रम के यहाँ होने की कल्पना तथा यवनों से अस्पृष्ट ( यवन माने मुसलमान ! भला, यूनानी नहीं) समय में हिंदूपद के प्रयोग की कल्पना कितना दुःख तुम्हारे कारण उठाना पड़ता है !!

बांबा दयानंद ने चरक के एक प्रसिद्ध श्लोक का हवाला दिया कि सोलह वर्ष से कम अवस्था की स्त्री में पचीस वर्ष से कम पुरुष का गर्भ रहे तो या तो वह गर्भ में ही मर जाय, या चिरजीवी न हो या दुर्बलेंद्रिय होकर जीवे । हम समझ गए कि यह हमारे बालिकाविवाह की जड़ कटी-नहीं, बालिकारभस पर कुठार चला । अब क्या करें ? चरक कोई धर्मग्रंय तो है नहीं कि जोड़ की दूसरी स्मृति में से दूसरा वाक्य तुर्की बतुर्की जवाब में दे दिया जाय । धर्मग्रंथ नहीं है, आयुर्वेद का ग्रंथ है इसलिये उसके चिरकाल न जीने या दुर्बलेंद्रिय होकर जीने की बात का मान भी कुछ अधिक हुआ। यों चाहे मान भी लेते- और व्यवहार में मानते ही हैं-पर बाबा दयानंद ने कहा तो उसकी तरदीद होनी चाहिये। एक मुरादाबादी पंडितजी लिखते हैं कि हमारे पड़दादा के पुस्तकालय में जो परक की पोथी है उसमें पाठ है-