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निबंध-रत्नावली

हुआ, छोटा वंश काँगड़े में राज्य करता रहा। श्मशान तो नदी के तीर पर हैं, जहाँ पर कई कुलों की सतियों की 'देहरियो' हैं। गाँव के बाहर, श्मशान से पौन मोल इधर, बछूहा ( वत्स+खूहा= वत्सकूप ) नामक जलाशय है जिस पर वत्सेश्वर महादेव हैं। उसके पुजारी रौलु (रावल ) नामक ब्राह्मण (?) होते हैं जो मृतक के वस्त्रों के अधिकारी हैं। वत्सकूप तथा महादेव के मंदिर के पूर्व को एक तिबारा-सा है। छत गिर गई है। खंभे और कुछ दीवालें बची हैं। वहाँ पर सैकड़ों प्रतिमाएँ हैं जिन्हें मूहरे (मोहरे) कहते हैं । मृत्यु होने के पीछे ग्यारहवें दिन जब महाब्राह्मणों को शय्यादान करते हैं, उस समय लगभग एक फुट ऊँचे पत्थर पर मृतक की मूर्ति कुराई जाती है । मूति बनानेवाले गाँव के पुश्तैनी पत्थर गढ़नेवाले हैं, जो पनचक्कियों के घरट बनाते हैं। मूर्ति सिंदूर लगाकर शय्या के पास रख दी जाती है। दान के पीछे शय्या और उपकरण महाब्राह्मण ले जाता है । मूति इस देवकुल में पहुंचा दी जाती है। इस कुल के प्रादमी जलाशय पर स्नान-संध्या करने आते हैं, तब मति पर कुछ दिनों तक जल चढ़ाते रहते हैं । मकान तो खंडहर हो गया है, पर उसके आसपास, वत्सेश्वर के नंदि के पास, जलाशय पर, जगह-जगह महरे बिखरे पड़े हैं। कई जलाशय की मेंड, सीढ़ियों तथा फर्श को चुनाई में लग गए हैं। कई निर्भय मनुष्य इन पत्थरों को मकानों की चुनाई के लिये ले भी जाते हैं। सभी उच्च जातियों के मृतक, मर्तिरूप