पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
निबंध-रत्नावली

एक एक करके वे सब बातें उसे स्मरण करने लगती हैं, जो वह हो चुकी हैं, वह माता-पिता की असाधारण कृपा, वह लड़कपन का अमायिक चरित्र, वह समवयस्क मित्रों की सरस बातें वह पाठशाला का लिखना-पढ़ना, सहपाठियों से लड़ना-झगड़ना और गुरुजनों की प्रेमपरिपूर्ण ताड़ना, जब याद आती हैं तब हृदय की जैसी दशा होती है वह हृदय ही जानता है। यदि दुर्भाग्यवश स्नेही मित्र और बंधुजनों से वियोग हो गया हो, तो वह देश वा स्थान और भी काटने लगता है। उस समय सुख होता है कि दुःख; यह तो भुक्तभोगी ही जाने, किंतु इस बात को हम भी कुछ जानते हैं कि केवल दुःख ही दुःख नहीं होता, कुछ सुख भी होता है। क्योंकि देखा गया है कि अपने मृत पुरुषों के श्मशान वा समाधिस्थान के देखने से अश्रपात होता है, कुछ दुःख भी होता है, किंतु सुखशांति न होती तो दर्शन की प्रवृत्ति ही क्यों होती?

जैसे देश वा स्थान का प्रभाव मनुष्य के चित्त पर अच्छा वा बुरा अवश्य पड़ता है, ठीक वैसे ही कान का भी प्रभाव मानव मंडली पर व्यर्थ नहीं पड़ता। चाहे काल का महत्त्व हमें निज बुद्धि-दोष के कारण ज्ञात न हो परंतु इसमें संदेह नहीं कि बड़े बड़े तार्किक और दार्शनिक पंडित इस विषय का मंडन कर गए हैं कि साधन-सामग्री में काल वा समय भी एक मुख्य वस्तु है। चाहे खेत कैसा ही अच्छा हो, जल का भी अभाव न हो और किसान भी कृषिकार्य में कुशल हो, तथापि बिना