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पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/४६

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निबंध-रत्नावली

जीवन, अखिलार्य-नरेंद्र-निषेवित-पाद-पद्म, महाराजाधिराजमाया- मानुष भगवान् रामचंद्रजी को साक्षात् परब्रह्म मानते थे! इस बात का वर्णन तो फिर कभी करेंगे कि जो हमारे दशरथ राजकुमार को परब्रह्म नहीं मानते वे निश्चय धोखा खाते हैं, अवश्य प्रेम- राज्य में पैठने लायक नहीं हैं। पर यहाँ पर इतना कहे बिना हमारी आत्मा नहीं मानती कि हमारे आर्यवश को राम इतने प्यारे हैं कि परम प्रेम का आधार राम ही को कह सकते हैं! यहाँ तक कि सहृदय समाज को 'रामपादनखज्योत्स्ना परब्रह्मोति गीयते' कहते हुए भी किंचित् संकोच नहीं होता! इसका कारण यही है कि राम के रूप गुण स्वभाव में कोई बात ऐसी नहीं है जिसके द्वारा सहृदयों के हृदय में प्रेम भक्ति सहृदयता अनुराग का महासागर न उमड़ उठता हो! आज हमारे यहाँ की सुख- सामग्री सब नष्टप्राय हो रही है, सहस्रों वर्षों से हम दिन दिन दीन होते चले आते हैं पर तो भी राम से हमारा संबंध बना है, उनके पूर्वपुरुषों की राजधानी अयोध्या को देख- कर हमें रोना आता है। हाय! जो एक दिन भारत के नगरों का शिरोमणि था वह आज फैजाबाद के जिले में एक गाँव मात्र रह गया है। जहाँ एक से एक धीर धार्म्मिक महाराज राज्य करते थे, वहाँ आज वैरागी तथा थोड़े से दीन-दशा-दलित हिन्दू रह गए हैं!

जो लोग प्रतिमापूजन के द्वेषी हैं, परमेश्वर न करे, यदि कहीं उनकी चले तो फिर अयोध्या में रही क्या जायगा? थोड़ेसे