आगे के लिये जिससे सब प्रकार के सुधार की आशा है, भूल जायँ, अथवा किसी के बहकाने से राम नाम की प्रतिष्ठा करना छोड़ दें तो कैसी कृतघ्नता, मूर्खता एवं आत्महिंसकता है। पाठक ! यदि सब भाँति की भलाई और बड़ाई चाहो तो सदा सब ठौर सब दशा में राम का ध्यान रखो, राम को भजो, राम के चरित्र पढ़ो सुनो, राम की लीला देखो दिखाओ, राम का अनुकरण करो। बस इसी में तुम्हारे लिये सब कुछ है। इस 'रकार' और 'मकार' का वर्णन तो कोई त्रिकाल में कर ही नहीं सकता-कोटि जन्म गावें तो भी पार न पावेंगे। इससे इस विषय को अधिक न बढ़ाकर फिर कभी इस विषय पर लिखने की प्रतिज्ञा करने एवं निम्नलिखित आशीर्वाद के साथ लेखनी को थोड़े काल के लिये विश्राम देते हैं, बोलो
राजा रामचंद्रजी की जय!
कल्पाणानां निधानं, कलिमलमथनं, पावनं पावनानाम्,
पाथेयं यन्मुमुक्षोः, सपदि परपदप्राप्तये प्रस्थितस्य।
विश्रामस्थानमेकं कविवरवचसां, जीवन सज्जनानाम्,
बीजं धर्म्मद्रमस्य भवतु भवतां, भूतये रामनाम॥