केवल मन लगाकर पढ़ना, प्रत्येक चौपाई का आशय समझना तथा उनके अनुकूल चलने का विचार रखना होगा। रामायण में किसी सदुपदेश का अभाव नहीं है। यदि विचार-शक्ति से पूछिए कि रामायण की इतनी उत्तमता, उपकारकता और सरसता का कारण क्या है, तो यही उत्तर पाइएगा कि उसके कवि ही आश्चर्यशक्ति से पूर्ण हैं, फिर उनके काव्य का क्या कहना? पर यह बात भी अनुभवशाली पुरुषों की बताई हुई है, फिर इन सिद्ध एवं विदग्धालाप कवीश्वरों का मन कभी साधारण विषयों पर नहीं दौड़ता। वे जब संसार भर का चुना हुआ परमोत्तम आशय देखते है तभी कविता करने की ओर दत्तचित्त होते है। इससे स्वयं सिद्ध है कि रामचरित्र वास्तव में ऐसा ही है कि उस पर बड़े बड़े कवीश्वरों ने श्रद्धा की है, और अपनी पूरी कविता-शक्ति उस पर निछावर करके हमारे लिये ऐसे ऐसे अमूल्य रत्न छोड़ गए हैं कि हम इन गिरे दिनों में भी उनके कारण सच्चा अभिमान कर सकते हैं। इस हीन दशा में भी काव्यानंद के द्वारा परमानंद पा सकते हैं। यदि चाहें तो संसार और परमार्थ दोनों बना सकते हैं। खेद है यदि हम भारत-संतान कहाकर अपने घर के इन अमूल्य रत्नों का आदर न करें, और जिनके द्वारा हमें ये महामणि प्राप्त हुए हैं उनका उपकार न मानें तथा ऐसे राम को, जिनके नाम पर हमारे पूर्वजों के प्रेम, प्रतिष्ठा, गौरव एवं मनोविनोद की नींव थी अथच जो हमारे लिये गिरी दशा में भी सच्चे अहंकार का कारण और
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