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निबंध-रत्नावली

को इन्हीं से ज्ञान मिलता है, भगवान का भक्त भक्ति पाता है और कर्तव्यपरायण वीर पुरुष भी राजनीतिक उपदेश से यहाँ आकर खाली नहीं रह सकता। देशकाल का ज्ञान, प्रकृति का सौंदर्य्य, महापुरुषों का सत्संग, भगवान् का स्मरण और समान धर्म्मवाले सज्जनों का समागम जैसा इन सातों में सुलभ है, वैसा दूसरी जगह करोड़ों के खर्च से भी नहीं। क्या यह साधारण उपकार है?

पृथ्वी के किसी अद्भुत प्रभाव और जल के किसी विचित्र तेज से तथा मुनियों के वासस्थान होने से तीर्थों की पवित्रता कहा गई है। अतएव इन तीर्थों की पुण्यभूमि कितनी आनन्द-दायिनी है, यहाँ सत्वगुण का कितना उद्रेक होता है, यह एक बार इनमें जाकर ही देखना चाहिए। बिना इसके इस अपूर्व रस का यथार्थ ज्ञान होना कठिन है।

इसमें संदेह नहीं कि आज-कल हमारी जैसी हीन और दीन दशा है, उससे कहीं बढ़कर हमारी इन पुरियों की है! हमारे दुर्भाग्य, हमारी अयोग्यता और हमारी उपेक्षा से हमारी इन तीर्थ-स्वरूप पुरियों का बहुत कुछ सौंदर्य्य और गौरव नष्ट-भ्रष्ट हो गया और रहा सहा भी प्रतिदिन नष्ट हो रहा है। जिनकी प्रतिष्ठा भार श्रीवृद्धि के लिये हमारे पूर्वजों को सिर तक देने में संकोच न था, अब उस पितरों के बचे बचाये सर्वस्व धन की हम उपेक्षा कर रहे हैं! इसे मूर्खता कहें कि कृतघ्नता? यह आप ही विचार लें।