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निबंध-रत्नावली


'सन् ५२६ ई० में बाबर मे हिंदुस्तान पर चढ़ाई की और दो वर्ष के पीछे अर्थात् सन् १४२८ में अयोध्या के एकमात्र अवशिष्ट रामकूट मंदिर को विध्वंस कर रघुवंशियों की जन्मभूमि पर अपने नाम से मसजिद बनगई, जो सही सलामत आज तक उसी तरह साभिमान खड़ी है। मुसलमान इतिहासलेखकों ने बाबर को शांत और दयालु बादशाह लिखा है; किंतु बाबर की बर्बरता और अन्याय के हमारे पास अनेक प्रमाण हैं, जिनको हम मरकर भी नहीं भूल सकते? अकबर के समय में धर्म्मप्रिय हिंदुओं ने नागेश्वर नाथ और चंद्रहरि आदि देवों के दस पाँच मंदिर ज्यों त्यों कर फिर बनवा लिये थे, जिनको औरंगजेब ने तोड़ उनकी जगह मसजिदें खड़ी की । सन् १७३१ ई० में दिल्ली के बादशाह ने अवध के झगड़ालू क्षत्रियों से घबराकर अवध का सूबा सआदतखाँ को दिया तब से इधर नवाबी की जड़ जमी।

अवध की नवाबी का बीज सआदतखाँ ने बोया था। मंसूर अलीखाँ और सफदरजंग के समय वह अंकुरित और पल्लवित हुआ। नवाब शुजाउद्दौला उसे परिवर्द्धित कर फल पाया । मंसूर अलीखाँ के समय अवध की राजधानी फैजाबाद हुआ (फैजाबाद वर्तमान अयोध्या से३ मील पश्चिम ओर है)। अयोध्या की राजश्री फैजाबाद के नाम से विख्यात हुई। यहाँ के मुसलमान मुदों के लिए अयोध्या करबमा हुई। मंदिरों के स्थान पर मसजिदों और मकबरों का अधिकार हुआ।