पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(५) धृति और क्षमा

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।
धीविद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥

महर्षि मनु ने कहा है कि धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शोच, इंद्रियनिग्रह, धी, विद्या, सत्य और अक्रोध-धर्म के ये दश लक्षण हैं। जिसमें ये लक्षण विद्यमान हों उसो को धर्मात्मा समझना चाहिए ।

"धृति" सबसे पहला धर्म का लक्षण है। धर्म-पथ में अग्रसर होने के लिये सबसे प्रथम धृति का पाथेय चाहिए। धर्ममंदिर में प्रविष्ट होने के समय सबसे पहले धृतिमान की पूछ होती है। जिसके पास धृति नहीं, उसके पास धर्म भी नहीं होता । क्षमा आदि सब गुणों से प्रथम 'धृति' का नाम लेकर महर्षि मनु ने इसी बात को सूचित किया है। इसलिये आज हम भी और लक्षणों से प्रथम इसी का विचार करते हैं।

स्मात टीकाकारों ने धृति शब्द का अर्थ बहुधा संतोष किया है और किसी किसी ने इसका अर्थ धैर्य भी लिखा है। दार्शनिक विचार से दोनों ही अर्थ ठीक है, क्योंकि दोनों का एक ही मूल विशुद्ध विचार है और फल भी एक ही धर्मप्रेम की प्रबलता वा साविक भाव की प्रगाढ़ता है । यद्यपि दोनों के स्वरूप में कुछ पार्थक्य है, पर सूक्ष्म विचार करने पर दोनों एक