अर्थात् किसी के दुर्वचन कहने पर भी या मार देने पर न तो आप क्रोधित होता है और न उस मारता है इस गुण को क्षमा कहते हैं। उस पुरुष का नाम क्षमाशील है, जो दुःखित किए जाने पर भी अचल, अटल बना रहे, धम्ममार्ग से विचलित न हो।
यों तो संसार में सभी लोग दूसरों के अपराध सहन किया करते हैं। प्रबल पुरुषों से पुन: पुन: तिरस्कृत होने पर भी बिचार दुर्बल पुरुष कुछ कहने का साहस नहीं करते । क्षमताशाली अत्याचारी राजपुरुषों से प्रपीड़ित होने पर भी दीन प्रजा बारंबार रोकर चुप रह जाती है किंतु यह सहनशीलता क्या क्षमा कही जा सकती है ? कभी नहीं। क्योंकि क्षमा नाम उस गुण का है, जिससे शक्तिशाली पुरुष शक्ति रखने पर दूसरे के अपराध क्षमा कर दे और जो पुरुष कायरता वा असामथ्य से उस कार्य के करन में स्वभावत: असमर्थ है, उसको क्षमा क्षमा कहलाने योग्य नहीं है।
हाँ, यदि किसी के दुःख पहुँचाने पर उसके अंतःकरण में अपने शत्रु के प्रति किसी प्रकार का कुभाव वा प्रतिकार की इच्छा तक उत्पन्न न हो और उस कार्य के लिए यह घृणाई न समझा जाय, तो वह पुरुष भी नि:संदेह क्षमावान है, क्योंकि जिस बात की शक्ति उसमें विद्यमान थी उससे उसने काम नहीं लिया। माना कि वह दीन पुरुष जिसको हमने धनमद से मच होकर अभी मारा है, रोकर वा चिल्लाकर हमारी कुछ हानि