पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/११०

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में ऐसा समागम शायद भारद्वाज वाया के समय में हुघा हो, चीच में तो सुनने में नहीं आया। यो कुम्भादि के मेलों में हजारों की भीड़ होती है, पर "कहारेशम के लच्छे, कहाझौचा भर झोथर" कहा कुपढ़ उजड वैरागियों के जमघट, कहा श्री अयोध्यानाथ, श्री मदनमोहन, श्रीरामपाल, उमेश, सुरेन्द्र सरीयों का देवसमाज

आहा । इस अवसर पर जिसने प्रयाग की शोभा न देखी उसने कुछ न किया । लूथर साहब के हाते का नाम हमने प्रेमनगर रक्सा था। क्योंकि लडके, बूढे, हिन्दू, मुसलमान, जैन, क्रिस्तान, पश्चिमोत्तरदेशी, बगाली, महाराष्ट्र, गुजराती, सिंधी, मद्रासी, फारसी, इगलिस्तानी सय के सब प्रेम से भरे दुए दृष्टि आते थे। किसी प्रकार की कोई वस्तु किसी समय आपको चाहनी हो, किसी कार्यकर्ता से कह दीजिए, बल, मानो कल फीलाई धरी है।सब के एक से पटमन्दिर, (डेरे)सव का एक विचार (देशहित) आमोद प्रमोद, सलाप समागम के सिवा किसी को कुछ काम नहीं । व्याख्यानालय में पहुंचने के सिवा कोई चिन्ता नहीं, हजारों की वस्तु अकेले डेरे में डाल आइए, सुई तक खो जाने का डर नहीं नहाने स्नाने,सोने, वैठने, सैर करने आदि की किसी सामग्री का अभाव नहीं । तनिक शिर भी दुखे, वैद्य, हकीम, डाकर सब उपस्थित हैं। पास ही काग्रेस के बाजार में दुनिया भर की चीजें ले लीजिए । पास ही तम्बू के तले दुनिया भर के समाचार (अयवार) जान लीजिए, पास ही डाक के बम्बे (लेटरवाक्स ) में लिय के डाल दीजिए, आपका सारा हाल आपके सवन्धियों को पहुच जायगा । उसके पास ही डेरे में चले जाहए, अपने घर- तरकात जातलीतिर। - 11