पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/११७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ८६ )

प्रेमिका के रंगदग का हो जाता है। पुण्य कैसा दी फुफर्मी ओर कर्कश हो, पर स्त्री सच्ची पनि-देवता हो तो पुरुष निलज व्यभिचारी न रहेगा। ऐसे ही पुरुष सचमुच स्त्री से प्रीति र तो स्त्री का सुधर जाना असम्भव नहीं है। इसी से कहते हैं कि पतिव्रता स्त्री दोनों कुल को सुशोभित करती है। जिस घर में पतिमता हो वह घर, पद फुल, वह देश धन्य है।

चित्तौर का राजवश भारत के इन गिर दिन में भी इतना प्रतिष्ठित है। इसका मुख्य कारण यही है कि इस घोर कलिकाल में भी वहा सहस्सा शूर और सती थीं। इस ज़माने मे हम देखते हैं कि शूरता का तो प्राय लोप ही सा हो गया है, पर सती मी यहुन कम रह गई है, यरंच नहाने के बराबर कह सकते हैं। सती से हमारा यह प्रयोजन रही है कि स्वाम वाह पनि के साथ जल जाना चाहिये । मुरय सनी यह है जो पति क विरद रूपी अग्नि में ऐसा दु.स अनुभव करे कि जीते जो मर जान के समान । पर हाय एक वह दिन थे कि हमारे यहा सतीत्व उस पराकाष्ठा का पहुचा हुआ था कि जीते जल जाना नक रिवाज हो गया था, और एक वह दिन है कि पतिव्रता इढ़े मिलना कठिन है ! हम यह तो नहीं कह सकते कि सारो नया रायमाबाई की साथिनी हो रही हैं, पर इममें भी सदेह नहीं है कि पति के दुससुन में अपना सच सुन सुख दुपसमझने वाली, पति की प्रतिष्ठा का पूरा ध्यान रपनेपाली, पति से सच्चा स्नेह निभानेपाली स्त्रियां भी हजारों में दस ही पाच हों तो हों।

इसके चई कारण है। एक तो यही किसी शिक्षा की चाल उठ सी गई है। यदि कोई कोई लोग पढाते भी है तो मेमो से