पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/११८

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या मेम दासियों से! भला चे ईमा के गीत और लिवरी सिखावेगी अथवा पतिव्रत दूसरे थोडा यहुत कुछ पढ भी गई तो घर का ठीक नियम नहीं है। बहुत सी दो दो चार चार पैसे की ऐसी पुस्तकें छप गई है जो पुरुषों के लिए तो खैर, जी यहलाने को अच्छी सही, पर स्त्रियों के लिए हानिकारक है। बावूसाहब बाजार स ले आए, घर में डाल दिया । बबुआइन साहया ने खोलके पढा तो "जोवन का मांगे दान कान्ह कुजन में-भला कोन माशा करें! तीसरे मरदों को तो सभाए भी है, असबार भी है, पुस्तके भी हैं, पर स्त्रियों के लिए उपदेश की कार्ड चाल ही नहीं है। हम आशा करते हैं कि श्रीमती, हेमन्तकुमारी देवी ( रतलामवासिनी ) अपनी "सुगृहिणी" नामक पत्रिका में पतिव्रत पर अधिक जोर देंगी, जिसमें सर्वसाधारण स्त्रियों को वास्तविक लाभ हो । फोटोग्राफी आदि की अभी हमारी गृह-देवियों के लिए अधिक आवश्यकता नहीं है। नवीन ग्रन्थकारी को भी चाहिए कि जहां और बहुत सी बातें लिखते हैं, कभी २ इधर भी मुफते रहे । व्याख्यान दाता लोग कभी २ स्त्रियों को भी परदे के साथ स्त्री धर्म को क्षिशा दिया करें । यही सब पतियत प्रचार की युक्तियां हैं ।

इधर हमारे गृहस्थ भाइयों को भी समझना चाहिए कि दोनों हाथ ताली बजती है । उन्हें पतिवता बनाने के लिए इन्हें भी स्त्री वन धारण करना होगा। एकयात और भी है कि स्त्रियां अभी विशेषत भूर्मा हैं । अत साम, दाम, दड, भेद से काम लेना ठीक होगा। निरे न्याय और धर्म से वे राह पर न श्रावेगी । ऐसी युक्ति से वर्तना चाहिए कि वे प्रसन्न मी रहे, और कुछ डरती भी रहे। तभी प्रीति करेंगी।