पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१२८

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अनत महिमा है। वहाअनुराग-विराग, सुप दु.ख, मुक्ति साधन सय एक ही है। इसी से सच्चे समझदार ससार में रह कर सब कुछ देखते सुनते, करते धरते हुए भी सलारी नहीं होते। केवल अपनी मर्यादा में बने रहते हैं, और अपनी मर्यादा वही है जिसे सनातन से समस्त पूर्व पुरुष रक्षित रखते थाए हैं, श्रीर उनके सुपुत्र सदा मानते रहेंगे। काल, कर्म, ईश्वर अनु कूल हो घा प्रतिकूल, सारा ससार स्तुति करे वा निदा, चाह्य दृष्टि से लाम देख पडे चा हानि, पर वीर पुरुष वही है जो कभी कहीं किसी दशा में अपनेपन से स्वप्न में भी विमुख न हो। इस मूलमंत्र को भूल के भी न भूले कि जो हमारा है वही हमारा है। उसी से हमारी शोभा है, और उसी में हमारा वास्तविक कल्याण है।

पतदनुसार आज हमारी होली है। चित्त शुद्ध करके वर्ष. भर की कही-सुनी क्षमा करके हाथ जोड के, पांव पड के, मित्रों को मना के, बाहें पसार के उनसे मिलने और यथा सामर्थ्य जी खोलके परस्पर की प्रसन्नता सम्पादन करने का दिन है। जो लोग प्रेम का तत्व तनिक भी नहीं समझते, केवल स्वार्थ-साधन ही को इतिकर्तव्य समझते हैं, पर है अपने ही देश जाति के, उनसे घृणा न करके ऊपरी आमोद- प्रमोट के समयतातिर नाते