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पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१५२

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गौरक्षा।

गौमाता की महिमा इससे अधिक क्या वर्णन की जाय फि देवता, पितर, मनुष्य, स्त्री,लडके, बूढ़े, सभी उनके अमृत समान दुध से तृप्त होते हैं। माननीया ऐसी हैं कि देश भर माता कहता है, जगत्पज्य ब्राह्मण नाम के भी पहले स्मरण की जाती हैं, 'गऊ ब्राह्मण' । भगवान का नाम भी उन्हीं के नाते गोपाल फहाता है। पवित्रता यह है कि उनका मलमूत्र तलक खाया जाता है। उपकार उनके अनत है। स्वयं तथा मतान द्वारा मरते जीते, लोक परलोक सव में हित ही करती हैं। ऐसी २ वार्ते एक लडका भी जानता है। फिर हम भी कई वार लिख ही चुके हैं, पार वार पिष्टपेपणमात्र है।

यह यात भी पूर्णतया विदित है कि बीस वर्ष भी नहीं मए, घी दूध कैसा सस्ता था, और उसके खाने से अब भी जो लोग पचास वर्ष के कुछ इधर उधर हैं कैसे बली और रोगरहित हैं। वे अपनी जवानी की कथा कैसे अहंकार से कहते हैं कि आजकल के लड़के एव नाजुक बदन गेगसदन जवान लोग सपने में भी उस प्रकार के मुख भोग के योग्य नहीं होसफते! जहा स्वादिष्ट और थलफारफ भोजन तक खेच्छापूर्वक न मिले वहां और सुखों की क्या कथा है।

यह भी अच्छी तरह सब जानते हैं कि 'प्रजावत्सल सार इस विपय में अपनी ओर से क्या, हमारी विनय सुम के भी सहाय फरती नहीं दीसती । याजे २ छठी मुसलमान कुरान और हदीस के घचन सुने अनसुने करके अपनी जिव का नियाह फरेंगे, इस मामले में हमारा साथ न देंगे। फिर यदि हम भी कुछ न करें तो दशदी पाच वर्ष में हमारी क्ष्य