पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१५१

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दशा होगी? यही विचार फर नगरों में चंदा, गोशाला, समा, खेन्त्र, लेकचर इत्यादि हो भी चलो, परच वाजे २ गाग्य शाली शहरों में धर्मिष्ठ मुसलमान भी शरीक हैं। परमेश्वर उनका सहायक हो। पर बडे खेद और लज्मा का विषय है कि इस फानपुर में, जहां हिन्दू ही अधिक है, विशेषतः ग्राह्मण ही क्षत्री धन, विद्या, प्रतिष्ठा आदि सामर्थ्य विशिष्ट है, परन्तु इस बात में यदि दूसरे चौथे वर्ष किसी के हुलियाए २ कुछ मन भी करते हैं तो बस कुछ दिन टाय २ पीछे से फिस्स । जहां कोई झूठ मूठ का सिर पैर का यहाना मिल गया वहीं वैर रहे ! यदि किया चाहे तो केवल दो चार लोग मिल के सब कुछ फर सकते हैं, पर हौसिला नहीं है। हजारों रुपया व्यर्थ विषय में -चुराते हैं। इन शहरवालो से तो हम अपने सुहृद अकबरपुरवासियों को धर्मनिष्ठता, और साहस की सराहना करेंगे, जहा श्रीयुत पण्डिनवर बद्रीदीन जी सुकुल, श्रीयुत वाघू तुल- सीरामजी अग्रवाल और श्रीयुत लाला टेकचन्द्र महोदयादिक योडे से सजनों के आन्दोलन से दोही भहीना के भीतर अनुमान छ• सौ के रुपया भी एकत्र होगया, सभा भी चिर- स्थायिनी स्थापित हुई है, व्याख्यान भी प्रति सप्ताह मनोहर होते हैं, और सब ने कमर भी मजबूती से वाध रक्सी है।

क्यों भाई नगरनिवासियो । अधिक न करो तो अपने जिले के लोगों को कुछ,तो सहाय दोगे? जहां सैकडों की पातशवाजी फूक देते हो. हजार्गे,दिवालियों को दे बैठते हो, अदालत में उडाते, हो, वहा गऊ माता के नाम पर कुछ भी न निकलेगा ? धर्म, नामवरी, खोक परलोक का सुख सव है, पर हौसिला चाहिए। ऐषयता, उद्योग, उत्साह