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पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१५९

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महाजनी शिक्षकों को दो घार रुपया महीना देते हैं, और पडुत सी मीठी २ यातों में उन्हें फुसलाके प्रति सप्ताह में दो या एक दिन हिन्दू चालकों को पादरिहाई शिक्षा देने जाया करते हैं। कभीर छोटी२ तसवीरें, कमी किता, कमी मिठाई आदि भी बांटते हैं। जिससे नादान पाये और भी मोहित होके लालच के मारे ओर भी ध्यान देके उनकी यातें सीखें, ओर अपनी रीति, नीति धर्म-कर्म, देव-पित्रादि को तुच्छ समझने लगे। मैने स्वय देखा है कि जिन बालकों के माता पितादिक नीच जाति के हिन्दू को छू के न्हावे हे उन यालको को गोद में विठा साहय ने मुह चूमा । लउके बिचारे फोतो यह नालीम दी गई है किसय पफ मा पाप से पैदा हुप है, जात पात मानना पाप है। और तालीम भी किसी यूरोप- वासी ने नहीं दी कि यह हमारे आचार से अज्ञात हो, घरच उन साहय ने शिक्षा दी है जिनके माता पिता मगी चमारादि नीच थे।मला शिक्षा देनेवाले या और शिक्षा यह कि-

"माला लकड, ठाकुर पत्थर गया निरवक पानी,
रामकृष्ण सव मूठे भैया चारो वेद कहानी"

तो बतलाए, इसका असर हमारे दुधमुहे पश्यों के जी पर केसार अनर्थ न मचावेगा! लडफपन की सीखी बातों का सस्कार जन्म भर बना रहता है, यह यात सय जानते हैं। क्या यह उपदेश, यह ईसा के गीत, यह ईसाइयों का मिथ्या प्रेम, हमारे नई पौध के हक में छिपी हुई भाग नहीं है ? इमारी समझ में सय पातो से पहिले इसके बुझाने का यन होना चाहिए। हम अपने देशहितेपी भाइयों से आशा करते है कि जहां मेलों और याजारों में ईसाइयों का मुकायिला करते फिरते है वैसे महाजनी पढ़ानेवालों को भी समझा