न होगी। आजकल अवनति है सही, पर ऐसी अपनति भी नहीं है, जैसी इतरों को किसी समय थी। और पर मेश्वर ने चाहा, एवं धीरे ऐसे ही उद्योग होते रहे जैसे गत यास पचीस वर्ष से देखने सुनने में आते हैं तो आशा होती है कि इन दिनों की सी दुर्दशा भी हजार दो हजार वर्ष तक न रहेगी। सब से अधिक राम की क्या का विह यह है कि इन गिरे दिनों में, जवकि हमारे गुण भी प्राय. दुर्गुण से हो रहे हैं, अब भी सहनशीलता, सरलता, धर्मदृढता, स्वच्छता, यश प्रियता, सूक्ष्म विचार आदि कई एक बातें, जो विचारशीलों ने माननीय मानी हैं, उनमें हम अनेक देशों से चढे बढ़े हैं।
समाव हमारे यहां आत भी किसी घास का नहीं है। जो यात अच्छी तरह समझा दी जाती है उसके माननेवाले मिली रहते हैं। हां, अपमी भोर से लाभकारक यात सर्व- साधारण को सूझती नहीं है। पर सुझाने के साथ ही बस विषय में हम औरों से पढ़ नहीं जाते तो वरावर 'ती भी हो आते हैं। क्या यह लक्षण भले नहीं है ? इसे जाने दो, यहां की जलवायु और पृथ्वी भी ऐसी है कि सब हालत में गुज़ाग चल सकता है। हां, संसारचक्र के “पतनात समुच्छ्या के नियमानुसार यह बात अवश्य होमी है कि रहंट का ऊपरवाला स्मटोला जय तक नीचे न हो जाय तबतक ऊपर फिर नहीं चढ़ना। इस न्याय से कुछ दिन अधःपतन योग्य था। पर प्यारा लडका कोई अपराध करे तो भी दयालु पिता अधिक काल तक उसे फष्ट में न देख सकेगा। वह दिन श्रय बहुत दूर नहीं है कि हमारी दुरवस्था पूर्ण रीति से दूर हो जाय । विश्वास के साथ देशहित में लगे रहना हमारा काम है। सय यातें जाती सी रही है, तो भी यदि हम अपनी