पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१६७

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निजता फोनमाने तो हमारे दिन फिरने में शका नही है। क्योंकि संसार का नियामक्ष जो है उसके साथ हमारा अधिक अपनपी है। यदि ईश्वर कोई जाग्रत एव चैतन्य गुणवाले का नाम है तो हमारे पूर्वज पियों का गाता सर्वथा भुला दे, यह सभव नहीं, और यह भी असभव है कि हमारे साढे तीन हाथ के पुतले में उनका कुछ भी अश न हो । हा, हम अपने ही को भूल जाय तो औरयात हे।नहीं तोयह यात अधिक प्रमाणीभूत है कि हमारी उन्नति औरों की उन्नति से अधिक थी, और अधिक काल तक रही है। हमारी अवनति औरों की अननति से न्यून है और उतने दिन रहना विचार से दूर है, जितने दिन औरों की रही है। क्योंकि इस बात में सन्देह नहीं है कि ईश्वर से हमको और हमसे ईश्वर को औरों से अधिक अपनायत है। यदि यह वात युक्ति और प्रमाणों से न भी सिद्ध हो सके ( यह फेवला अनुमान कर लो) तो भी यदि हम प्रास्तिक है तो हमें विश्वास कर्तव्य है कि-

मोपर करहिं सनेह विशेषी, मैं करि प्रीति परीक्षा देसी।

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