पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१७३

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फि एफ पानी भरी साल, ग्रिसके भीतर अर्थात् हृदय में फुछ न हो। 'मूर्सस्य हृदय शून्य' लिसा भी है।

मनसवा-मन अर्थात् दिल ओर शव थर्थात् मुरदा (माका- रान्त होने से स्त्रीलिंग हो गया) भाव यह कि स्त्री के समान अकर्मण्य, मुर्दा दिल, हिम्मत ।

मर्द -मरदन कीया हुआ,जैसे लतमर्द ।
 
खसम-परबी में सिस्म शत्रु को कहते है।
 

सन्तान-जो सन्त अर्थात् याया लम्पटदास की शान से जन्मे।

यालफ-या सरयूपारी भाषा में 'हे' को कहते हैं। जैसे ऐसन या अर्थात् ऐसा ही है, और लक निरर्थक शब्द है। मात्र यह कि होना न होना बराबर है।

लडका--जो पिता से तो सदा कहे लड, अर्थात् लड ले और स्त्री से कहे, का (पया आशा है )

छोरा-कुलधर्म छोड देनेवाला (रकार डकार का यदला)

पुत्र-पुमाने नक (सस्कृत) और त माने तुझे, (फारसी, जैसे जयात् चिदिहम-तुझे उत्तर क्या दू) और रादाने धातु है, अर्थात् तुझे नर्क देनेवाला।