पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१७८

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मक्षर कचहरी से उठ जाय तो प्रजा का अरिष्ट दूर हो । ऐसे बुद्धि शत्रुओं से शास्त्रार्थ करना व्यर्थ है जो कल को कहेंगे, नागरी-कविता में उरदू की भांति स्वाभाधिक दुकर्मों का वर्णन नहीं होता। आगे से हमारे पाठक क्षमा करें। हम ऐसे प्रमादियों का उत्तर यदि कोई विचारणीय विषय न होगा तो बहुत कम देंगे। जो मूर्ख उरद को प्रशंसा और वेद से सेके'थाल्हा तक को आधार सर्वगुणागरों नागरी देवी की निन्दा को केवल निज का विषय समझता हो, और अनर्थ हाहा ठीठी में देश सेवा गिनता हो, उसंकी यकवाद पर ध्यान देंना निष्फल हैं।