पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१७९

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मुक्ति के भागी।

एक सोध, घर के फनवजिये, क्योंकि पैराग्य इनमें परले सिरे का होता है। सब जानते हैं कि स्त्री कानाम अर्धाङ्गी है। पढे लिग्वे लोग तक धापस में पूछते है "कही घर का क्या हाल है ?" इससे सिद्ध हुआ कि घर स्त्री ही का नामा. सर' है। उस स्त्री को यह महातुच्छ समझते हैं। यहा तक कि 'हे मेहरिया तो पाय पाये के पनहीं', यरच पनहीं के खो जाने से तो रुपया धेली कासोच भी होता है, परन्तु स्त्री का बहुतेरे मरना मनाते है । अब कहिये, जिमने अपने आधे शरीर एव ग्रह देवना को भी तृणवत् समझा उस परम स्यागी वैरागी की मुक्ति क्यों न होगी?

दुसरे अदतिए, क्योंकि प्रेतत्य जीते ही जी भुगत लेते है। म माना कानपुर आके देख लो, वाजे याजो को' आधी रात हक दतून करने की नौबत नहीं पहुचती । विन रात चैपारियों को हार २ में यह भी नहीं जानते कि सूरज कक्षा निकलता है। मला जिसे जगत् गति व्यापतो ही नहीं, जिसे सुधा तृषा लगती ही नहीं है, उस जितेंद्री महापुरुष को मुकिन होगी, तो किसे होगी?

तीसरे उपदश रोगवाले, क्योंकि बडे २ औधों ने सिख किया हे कि इस रोग से हड़ियों तक में छिद्र हो जाते हैं तो कपाल में भी हड्डी ही हे, शरीर को भीतर ही भीतर फॅक देनी है। अय समझने की बात है कि जिसके प्राण प्रमाण्ड (शिर )फोड के निधन तथा पचाग्नि फी परदादी प्रति सोमाग्नि का सेवन करे वह परम योगी शरमग भुपि के समान तपखी क्यों न मोक्ष पावेगा? 1 .