पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/१८०

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हमारे पाठक कहते होंगे, कहां की खुराफात यफते हैं । स्वैर, तो अय सांची २ सुना चले।

वर्ग, नर्क, मुक्ति कहीं कुछ चीज नहीं है। युद्धिमानों 'म पुराई से बचने के लिए एक हौवा बना दिया है, उसीका माम नर्क है, और स्वर्ग वा मुक्ति भलाई की तरफ झुकाने के लिए एक तरह की चाट है। अथवा जो यह मान लो कि जिसमें महादु.ख की सामग्री हो वह नर्क और परम सुख सर्ग है तो सुनिए, नी जीव हम गिना चुके, उन्हीं के भाई वद और भी है। रहे स्वर्ग के सच्चे पात्र, वह यह है--किसी हिन्यी-समाचारपत्र के सहायक, बशर्तेकि धार्षिक मूल्य में धुकर पुकुर न करते हो, और पढ़ भी लेते हों, उनको जीते ही जी स्वर्ग न हो तो हम जिम्मेदार । दूसरे देशोपकारी कामों में एक पैसा तथा एक मिनट भी लगावेंगे वे निस्सन्देह वैकुंठ पावेंगे, इसमें पाव रत्ती का फरक न पडेगा। हममे तथा बडे २ विद्वानों से ताये के पत्र पर लिखा लीजिए। तीसरे गोरक्षा फे लिए तन, मन, धन से उद्योग करनेवाले । अन्न, धन, दूध, पूत सय कुछ न पावें, तथा शरीर मोक्ष का मजा न उठा तो वेद, शास्त्र, पुराण और हम सबको झूठा समझ लेना, चौथे परमेश्वर के प्रेमानन्द में मस्त रहने वाले तथा भारत भूमि को सच्चे चित्त से प्यार करनेवाले एक ऐसा अली फिफ अपरिमित एव अकथ आनन्द लूटेंगे कि उसके मागे मुक्ति और मुचि तृण से भी तुच्छ हैं। हमारे इस धवन को 'प्रहावास्य सदा सत्यम्' न समझेगा यह सब नास्तिकों का गुरु है।