पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/२९

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कविता की है। इस पिछती कविता का गोरक्षाविषयक एफ नमुना देखिए-

गैया माता तुमका सुमिरों, कीरत सयते घडी तुम्हारि । करी पालना तुम लरिकन के, पुरिसन वैतरनी देउ तारि । तुम्हरे दूध दही की महिमा, जानें देव पितर संव कोय । को अस तुम बिन दूसर जेहिका, गोवर लगे पवितर होय।। जिनके खरिका खेती 'करिक, पाले मनइन के परिवार । ऐसी गाइन की रछ्या मां, जो कुछु जतन करौ सो वार। घास के यदले दूध पियावे, मरि कै देय हाड श्री. चाम । धनि पह तन मन धन जो आवै, ऐसी जगदम्मा के काम २ आल्हास्नएड की पोथी ले फे,चाखीतनुक लिखा कस माय । "जहा रोसैंया है ऊदन के, भुरषा मुगुल - पछारै गाय"। को प्रस हिन्दू ते पैदा है, जो अस हालु देखि एक साथ। रफत के श्रासन रोय न उठिहै, माथे पटकि दुहत्या हाथ ॥३ खय दुस सुन तो जैसे तैसे, गाइव की नहिं सुने गुहार । जब सुधि आवै मोहि गैयन की, नैनन बह रकत की धार । दियां की बातें तो हिय रहि, अय फम्पू के सुनी हवाल । जहां के हिन्दू तन मनधनते, निसदिन करें धरम प्रतिपाल।।४

प्रतापनारायण के आरहा का नमूना आप देख चुके । अब उसकी भक्ति रस में सराबोर कविता का एक उदाहरण खीजिए-

आगे रहे गनिका मज गीध सुतौ अय कोऊ दिखात नहीं हैं। पापपरायन ताप भरे परताप समान म भान कही हैं। हे सुखदायक प्रेमनिधे जग यों तो भले औ बुरे सय ही हैं। दीनदयाल औ दीन प्रभो तुम से तुमही हमसे हमही हैं।१