इस पध की हम तारीफ नहीं कर सकते। सरस कविता का यह बहुत ही अच्छा नमूना है।
अब इनकी थोडी सी उर्दू कविता सुनिए। यह कविता एक तरह के समस्यासमूह की पूर्ति है। इसमें पहली पक्ति इनकी है, दूसरी और किसी की। पर, मेल दोनों का खय मिल गया है।
वो बद सू राह क्या जानै वफा की।
'अगर गफलत सेप्याज़ पाया जफा की ॥१
न मारी गाय गोचारन किया वन्द ।
'तलाफ़ी की जो जासिम ने तो क्या को' ॥२
मिया प्राये हैं बेगारी पकडने ।
'कहे देती है शोस्ती नकशे पा की।३
पुलिस ने और यदकारों को शह दी।
'मरज़ बढता गया ज्यों ज्यों दवा की॥४
जो काफिर कर गया मन्दिर में विद्अत ।
'घो जाता है दुहाई है खुदा की' ॥५
शवे कतलागरे के हिन्दुओं पर ।'
'हकीकत खुल गई रोजे जजा की' ॥६
सवर हाकिम को दें इस फिक में हाय ! . .
'घटा की रात और हसरत बढा, की॥७
कहा अब हम मरे साहब कलक्टर।
'कहा मैं क्या करू मरजी खुदा को'।।८ - 7 Y