पण्डिन प्रतापनारायण ने "ग्राहाणा में अपना चरित जिसने शुरू किया था। आपने उसका नाम रग्या था "प्रताप- चरित्रण"परन्तु यह पूरा नहीं हुआ। छपा हुआ उसका सिर्फ पहला फार्म, अलग, पुस्तकाकार, सङ्गग्लिास प्रेस वाकोपुर, से हमें मिला है। उसमें प्रतापनारायण ने अपने पूर्वजों का वृत्तान्त लिखा है। उसके अनुसार श्राप कान्यकुब्ज ब्राह्मणों के अन्तर्गत वैजेगार के मिश्र थे। आपका गोत्र कात्यायन था। इसी से आप अपने को “महपि कात्यायन कुमार" लिखते थे। इनकी देखादेखी,और भी दो एक आदमी अपने को "कात्यायन कुमार" कहने लगे है। अवध में एक जिला उनाय है। कानपुर से उनाव (शहर) पाच छ कोस है । बेजेगार उसी जिले में है । उनाव से वह थोडी ही दूर है। प्रतापना- रायण के पिता का नाम सङ्कटाप्रसाद, पितामह का रामद याल और प्रपितामह का सेवकनाथ था। इनके पितामह रामदयाल मिश्र, सुनते हैं, कवि थे। पर उनकी लिखी हुई कविता प्रतापनारायण के देखने में नहीं आई । इनके पिता सङ्कटाप्रसाद अच्छे ज्योतिपी थे । १४ वर्ष की उम्र में घे अपना जन्मग्राम छोडकर, जीविका के लिए, कानपुर आये। यहां, धोरे धीरे, उनकी आर्थिक दशा अच्छी हो गई और
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