पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/४

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उन्होंने कुछ रियासत भी पैदा कर ली। कुछ दिन तक, गाजि-उद्दीन हैदर के समय में, दीवान फतेहचन्द के यहां उन्होंने नौकरी भी की। प्रतारनारायण की चाची कानपुर- निवासी प्रसिद्ध प्रयागनारायण तिवारी के चश की थी। इस योग के कारण प्रतापनारायण के पिता को कानपुर में रहने में बहुत सुभीता हुआ।

लड़कपन और विधभ्यस।

प्रतापनारायण का जन्म आशि्वन कृष्ण ६, स. १९१३, (१८५६ ईसी) में हुआ था। इनके पिता ज्यातिपी थे। इससे उन्होंने अपने पुत्र प्रतापनारायण को भी ज्योतिर्विद् बनाना चाहा । पर प्रतापनारायण को "आदिनाडी वर हन्ति मध्य- नाडी च कन्यकाम्"वाले मसले पसन्द नही आये। इससे लाचार होकर पिता ने उन्हें अगरेजी मदरसे में भेजा। जिस मदरसे में आपने अगरेजो फा आरम्भ किया उसपर आपकी बहुत दिन तक कृपा नही रही । इस कारण पादरियों के मदरसे में मापने पदार्पण किया। यहा उनका और 'आर्मी प्रेस", (कानपुर) के मालिक वायू सीताराम का साथ हुआ। बाबू सीताराम से मालूम हुआ कि प्रतापनारायण का दिल पढने में न लगता था। इससे वे अपने अध्यापकों के यहुधा कोपभाजन हुआ करते थे। धीरे धीरे उन्हें पढना पीडाजनक मालूम होने लगा और अगरेजी की बहुत ही थोडी विशता प्राप्त करके आपने, १८७५ ईसवो के लगभग, स्कूल से अपना पिएड छुडाया। इसके कुछ दिनों बाद आपके पिता की मृत्यु हुई। इससे इनकी शिक्षा की इकदमही समाप्ति हो गई। स्कूल में इनकी दूसरी भाषा हिन्दी थी। पर इन्होंने उर्दू में