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(३१)
रायण मी ताररस के प्रेमी ये।ये उदाहरण भी उसी रस के हैं।
(पपिहा जब पछि हैं पीच कहाँ)
धन पैठी है मान की मूरति सी
मुख खोलति चोले नमामि हो।
तुमही मनुहारि कै हारि परे
सखियान की कौन चलाई कहां।
घरखा है प्रतापजू धीर धरो
अध तो मन को समुझायो जहां ।
यह ध्यारि तवं यदलैगी फडू
पपिहा जव पूछिहै पीव कहा ॥१॥
(धीर वली धुरवा धमका)
यूड़ि मरे न समुद्र में हाय
ये नाहक हाय निछीछे दुवार्थ ।।
का तजि लाज गराज किये
मुख कारोलिये इतही उत ,धाःषैं ।
मारि धुखारिन पै बज मारे
घृथा युंदियान के पान चलावै।
योर है सौ घल धीरहि आय के
योर यली धुरपा धमकावै ॥२॥
(पजनी घुधुरु रजनी उजियारी)
पासघ छाफि मुली कृतिपै
सुलि पेलति जोयन की मतवारी।
गात ही गात अदा ही अदा
फ? यात ही वात सुथा सुखकारी।