न आई दया • •मो मक्षियों को।
'तड़पते रहे नीमजा कैसे कैसे॥६
विधाता ने यां मक्खियां मारने को।
'धनाये हैं खुशरू जवां कैसे कैसे' ॥७
अभी देखिए क्या दशा देश की है ।
'यदलता है रग आसमां कैसे कैसे।।८
निर्गन्ध इस भारती याटिका के।
'गुलो लाल श्री डारगवां कैसे कैसे ॥
हम वह दुखद हाय भूला है जिसने ।
'तघाना किये नाता कैसे कैसे '।१०
मताप अपनी (अप तो १) होटल में निर्लजता के।
'मझे लूटती है जवां कैसे कैसे ॥ ११
कानपुर के कवियों ने जो "रसिकसमाखनाम का कविसमाज स्थापित किया था, उसके प्रतापनारायण जो पछे उत्साही मेम्बर थे। जब तक वह उनके सामने चला उसमें प्राय. समस्यापूर्ति ही का उद्योग रहा। रसिकवाटिका नाम की पुस्तक की एक जिल्द में इस समाज के काव्यकलाप के साथ प्रतापनारायण की जो कविता छपी है, उससे हम उनके कुछ छन्द चुनकर पाठकों की भेट करते हैं। प्रतापना
- जब सन् १८९७ ई० कानपुर में कविसमाज की स्थापना की
गई, तय स्वर्गीय प्रतापनारायण जी की कचि पर ध्यान रख कर ही उसका पाम "रसिपसमाज" और उसकी पमिका का माम "रतिफ- याटिका" रक्ता पया।