अनुमान, उपमान और शब्द) के अन्तर्गत शान्द प्रमाण को।
लक्षण ही यह लिखा है कि 'आप्तोपदेश शब्द ' अर्थात् प्राप्त
पुरुष का वचन प्रत्यक्षादि प्रमाणों के समान ही प्रामाणिक
होता है, वा यो समझ लो कि प्राप्त जन प्रत्यक्ष, अनुमान ओर
उपमान प्रमाण से सर्वथा प्रमाणित ही विषय को शब्द पर
करते हैं। इससे जान पड़ता है कि जो सब प्रकार की विद्या,
बुद्धि, सत्यभाषणादि सद्गुणों से सयुक्त हो यह प्राप्त है, और
देवनागरी भाषा में प्राप्त शब्द सब के उच्चारण में सहजतया
नहीं आ सकता, इससे उसे सरल करके आप पना लिया गया
है, और मध्यम पुरुष तथा अन्य पुरुष के अत्यन्त आदर का
द्योतन करने में काम आता है।' 'तुम बहुत अच्छे मनुष्य हो'
और 'यह बडे सजन है -पेमा कहने से सच्चे मित्र वनावट
के शत्रु चाहे जैसे “पुलका प्रफुल्लित प्रित गाता" हो जायें,
पर व्यवहार-कुशल लोकाचारी पुरुष तभी अपना उचित
सन्मान समझेगे जर कहा जाय कि "आप का क्या कहना है,
"आप तो बस सभी बातों में एक ही हैं" इत्यादि ।
अब तो आप समझ गये होंगे कि आप कहा के हैं, कौन हैं, कैसे हैं, यदि इतने बड़े बात के पतगड से भी न समझे हो तो इस छोटे से कथन में हम क्या समझा सकेंगे कि 'आप सस्कृत के आप्त शब्द का हिन्दी रूपान्तर है, और माननीय अर्य की सूचनार्थ उन लोगों (अथवा एक ही व्यक्ति) के प्रति प्रयोग में लाया जाता है जो सामने विद्यमान हों चाहे बाते करते हों, चाहे बात करनेवालों के द्वारा पूछे बताये जा रहे हो, अथवा दो चा अधिक जनों में जिनकी चर्चा हो रही हो। कभी कभी उत्तम पुरुष के द्वारा भी इसका प्रयोग होता है, वहां भी शब्द और अर्थ बद्दी रहता है, पर विशेपता यह रहती है -