बरम्यूहि हो जायगा। फिर यदि हम कहें कि बालकों का नाम, रुप, गुण, स्वभाव सभी मानन्दमय है तो क्या झूठ है। दुःख का तो इनके पास एक दिन भी गुज़र नहीं। कोई खिलौना टूट गया, अथवा खाने को न मिला तो घडीमर रो लिए, जहा दूसरी ठोर चित्त चल दिया, फिर मगन के मगन । बुद्धिमानों का सिद्धान्त है कि दुःख पाप का फल उस पाप का वे नाम भी नहीं जानते । फिर इनसे और दुःस से क्या मतलव ।
कभी २ यह किसी मनुष्य वा बिल्ली अधवा 'कुत्ता के पिल्ले को छुरी आदि भी मार दें, कभी कोई बहुमूल्य वस्तु भी नए कर दें तो भी यह निर्दोप ही है, कभी किसी पर मलमूत्र तो भी निरपराध ही हैं। क्योंकि इन्हों ने तो,ऐसा काम क्रीडा मात्र के लिए किया है। इन्हीं कारणों से सर्कार भी इन्हें दर योग्य नहीं ठहराती। बहुधा दुष्ट पुरुष वा नियां गहने के लोभ अथवा अपने व्यभिचार की बदनामी के डर से इन दयापात्रो पर राक्षसत्व दिखलाते हैं । उनको हमारी न्यायशीला गर्न मेन्ट दह भी ऐसा ही कठिन देती है जो दूसरे चोरों और वारों को नहीं मिलता। हमारी समझ में यदि ऐसे माता.' पिताओं को भी कुछ दंड दिया जाय जो अज्ञान वालको को पहिराय ओढाय के विना तकवैया छोड़ देते हैं। इसी प्रकार ऐसे लोगों की भी सजा ठहरा दी जाय जो कामवती बाल विधयानों के पुनर्विवाह में बाधक होते हैं वो सोने में सुगध हो जाय । व्यभिचार, चोरी और और ऐसा ही कुकर्म तो श्री पुरुप करें, प्राण जाय विचारे दूध के फोहों का। ऐसे 'पापियों को तो कुत्तों से नुचपाना भी अयुक्त नहीं है। फासी आदि वो सर्कार की कोमलचितता है।