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पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/५८

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कारिणी मान लो, चाहे मुसलमानों और किसानों के मता अनुसार सदा के लिए आत्मा को फूकनेवाली ठहरा लो। हेर फेरके मिद्धात यही निकलेगा कि यह न हो तो हमारा निर्वाह न हो, या यों कहो किन हो तो मल्लामिया की कुदरत को वर्तमान कानून बदलनी पडे । हों, और नियमबद्ध न हो तो हमारी जीवन यात्रा नर्कमय हो जाय, इसलिए यही उचित है कि जैसे बने वैसे हिकमत के साथ इनसे वर्ताव रखें।

न का अर्थ है नहीं और अरि कहते हैं शत्रु को,भावार्थ यह हुआ कि न यह शत्रु हे न इनसे अधिक कोई शत्रु है। जहा तक हो, इन्हें स्वतत्रता न सौंपो । अच्छे वैद्यों के द्वारा, पथ्यापथ्य विचार-द्वारा, म्यूनिसिप्यलिटी द्वारा, सदुपदेश द्वारा नारी मात्र को अनुकूल रखना ही श्रेयस्कर है। तनिक भी व्यतिक्रम पाओ तो वैद्यराज से कहो, महाराज नारी देखिए, मुहल्ले के मेहतर से कहो कि चिलम पीने को यह पैसालो, और नारी अभी साफ़ करो, घर की लती से कहो नारी! ऐसा उचित नहीं । कोई अफीम खा गया हो तो उसके सवधी से कहो कि नारी का साग पिलाना चाहिए । इसी प्रकार सदैव मारी का विचार और भगवान् मदनारी (कामदेव' के नाशक शिव) को ध्यान रक्सा फरो, नहीं महामनारी हो जाओगे।क्षेणी:निबन्ध - नवनीत