जी की कविता को पाठ फरते थे। हरिश्चन्द्र के लेख पढने, लावनीवालों की लावनी सुनने, और "ललिता जी की लीला में योग देने से, सुनते हैं, प्रतापनारायण की हृदय भूमि में फविना का पीज अच्छी तरह अड्डरित हो गया। इसके बाद उन्द शास्त्र के नियम भी शायद उन्होंने "ललिता जी से सीखे। क्योंकि, सुनते है, इस विषय में घे "ललित" जी को अपना गुरू मानते थे।
प्रतापनारायण को हिन्दी अखबार पढ़ने का लडफपन ही से शौक था। इसी शौक से धीरे धीरे उत्साहित होकर गोपीनाथ खन्ना इत्यादि की मदद से इन्होंने १५ मार्च १८८३ से "चाहाण" नामक एक १२ पृष्ठ का मासिकपत्र निकालना शुरू किया । यह कोई दस वर्ष तक निपलाता रहा । पर निकलने में यह यहुत अनियमित था। जन्म होने के थोडे ही दिन बाद इसके निकलने में देरी होने लगी। इस देरी का कारण प्राय पण्डित प्रतापनारायण की वीमारी थी। आप अक्सर बीमार रहा करते थे। विशेष शिकायत आपको बवासीर को थी। १८८७ इसवी में "ब्राह्मण" कुछ दिनों के लिए धन्द भी होगया था। इनकी मृत्यु के बाद भी “सङ्ग- वीलास प्रेस" (वाकोपुर) के मालिक, बाबू रामदीनसिंह, ने "ब्राह्मण" फो कुछ समय तक जीवित रखा। पर वह चला नहीं, रन्द ही हो गया। प्रतापनारायण पर बार रामदीनसिंह की विशेष कृपा थी। उसकी बहुत सी पुस्तकों को याबू सादव ने छापकर प्रकाशित किया है। प्रतापनारायण ने कुछ को