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पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/६४

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-उनकी श्रासों से देखना चाहिए, जिनके प्रेमाचार कोप के समय भोह सकोड लेते हैं। आहा हा, कई दिन दर्शन न मिलने से जिसका मन उत्कण्ठित हो रहा हो उसे वह दयाभिराम की प्रेमभरी चितवन के साथ भावभरो भृकुटी ईद के चाद से अनंत ही गुणी सुखदायिनी होती है। कहा तक कहिए, भृकुटी का वर्णन एक जीभ से तो होना ही असभव है। एक फारसी का कवि यह वाक्य फहफे कितनी रसशता का अधिकारी है कि रसिकगण को गूगे का गुड हो रहा है-भृकुटी-रूपी छद-पक्ति के सहनों सूक्ष्म अर्थ हैं, पर उन अर्थों को विना घास की साल निकालनेवालों अर्थात् महा तीव बुद्धिवालों के फोई समझ नही सकता !* जब यह हाल है कि महा तीव-वुद्धि केवल समझ सकते हैं तो कहने की सामर्थ्य तो है किसे ? सस्कृत, भापा,फारसी और उर्दू में काव्य का ऐसा कोई ग्रन्थ ही नहीं है जिसमें इन लोमराशि का वर्णन न हो।

अत हम यह अध्याय अधिक न बढाफ इतनाऔर निवेदन करेंगे कि हमारे देश-भाई विदेशियों की वैभवोन्मादरूपी धायु से सचालित भ्रकुटी-लता ही को चारो फलदायिनी समझके न निहारा करें, कुछ अपना हिताहित आप भी विचारें। यद्यपि हमारा धन, बल, भाषा इत्यादि सभी निर्जीव ले हो रहे है तो भी यदि हम पराई भौंहे ताफने की लत छोड दें, आपस में पात २ पर भौंहैं चदाना छोड दें, हद्धता से कटिवद्ध होके, बीरता से भौहें तानके देश-हित में सन्नद्ध होजाय, अपने देश


  • इशारा मानिए चारीक बाशद बैते धनुरा । चार मशिगाफा कसन फ़हमद मानिए करा।