पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/७३

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रही हो तो देखा दोगा, फैसे २ प्रतिष्ठित, कैसे २ सभ्य, कैमे फैसे धर्मध्वजी पहा जाकर क्या क्या लीला करते है ! मदि महाजनों से कमी काम पडा हो तो आपको निश्चय होगा कि प्रगट में जो धर्म, जो ईमानदारी, जो भलममीदीख पहती है पप गुप्तरूपेण फै जनों में कहां तक है ! जिन्हें यह विश्वास हा कि ईश्वर हमारे कामों की परीक्षा करता है, अथवा ससार में हमें परीक्षार्थ भेजा है उनके अन्त करण की गति पर हमें दया आती हे। हमने तो निश्चय कर लिया है कि परीक्षा परीक्षा का क्या काम है, हम जो कुछ है उस सर्वश सर्वातरयामी से छिपा नहीं है। हम पापात्मा, पाप । समव, भला उसके मागे परीक्षा में के पास ठहरेंगे?

ससार में ससारी जीव निस्सन्देह एक दूसरे की परीक्षा न करें तो काम न चले, पर उस काम के चलने में कठिनाई यह है कि मनुष्य की बुद्धि अल्प है, अत प्रत्येक विषय का पूर्ण निश्चय समव नहीं। न्याय यदि कोई वस्तु है, और यह • पात यदि निस्सन्देह सत्य है कि निर्दोष अफेला ईश्वर है तो हम यह भी कह सकते हैं कि जिसकी परीक्षा १०० यार कर खोजिए उसकी ओर से भी सन्देह बना रहना कुछ प्राचर्य नहीं है! फिर इस बात को कोन कहेगा कि परीक्षा उरमन का विषय नहीं है। कण्टी ही लोग पाधा मिष्टभापी और शिष्टाचारी होते हैं, थोड़े ही मूल्य की धातु में अधिक ठनठ- नाहट होती हे, थोडीही योग्यता में अधिक प्राडम्बर होता है, फिर यदि परीक्षक धोखा खा जाय तो क्या अचमा है। सय गुणों में पूरा अकेला परमात्मा है, अत ठीक परीक्षा पर जिस- की कलई न खुल जाय उसी के धन्य भाग! हमने भी स्वय अनुभव किया है कि बरसों जिनके साथ बदनाम रहे,धीसियों