पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/७४

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हानियां सही, फई पार अपना सिर मुडवाने को और प्राण देने या कारागार जाने को उद्यत हो गये, उनके दोष अपने ऊपर ले लिए, और घे भी सदा हमारीघात २पर अपना चुल्लू भर लोह सुखाते रहे, सदा फहते रहे, जहां तेरा पसीना गिरेगा वहां हमारा मृत शरीर पहिले गिर लेगा, पर जब समय थाया, कि गैरों के सामने हमारी इज्जत न रहे, तो उन्हीं महा' शयों ने फटी उगली पर न मूता!

यदि कोई कहे कि तुम कौन बड़े बुद्धिमान हो जो तुम्हारे तजरचे (अनुभव) पर हम निश्चय कर लें, तो हम मान लेंगे। पर यह कहने का हमें ठौर वगा है कि मुद्दत तक राजा शिव प्रसादली कोसहतो ने क्या समझा, और अन्त में क्या निकले। संयमहमद साहब को पहिले यहुतेरों ने निश्चय किया कि देशमात्र के हितैयो हैं, पीछे से यह खुला कि केवल निज सह धर्मियों के शुभचिंतक है। यह भी अच्छा था, पर नेशनल काप्रेस में यह सिद्ध होगया कि "योसिसोसि तव चरण नमामी । "हिन्दी प्रदीप से ज्ञात हुआ कि दिहाती भाई भी सैयद पाया पर मधुर वानी की शोगेनी चढ़ाते हैं। हम भी मानते हैं कि कांग्रेस अभी ३ चरस की बच्ची है, ग्स पर रक्षा का हा रमना ही उन्हें योग्य है, क्योंकि यह हिन्दू-मुसलमान दोन को हितपिणी है, ऐसे यहुन मे दृष्टान्त अनुमान है कि सभी को मिला करते होंगे, जिनसे सिद्ध है कि परीक्षा का नाम खुरा राम न करे कि इसकी प्रचड प्राच से किसी क फलई खुले । एक आर्य कवि का अनुभूत वाक्य है-

'परत सायिका सावुनहि देत स्वीस सी काढि'

एक उर्दू कवि का यह वचन कितना हृदयग्राही है-

'इम शर्त पर जो लीजे तो हाजिर है दिल अमी,
'रजिश न हो, फरेख न हो, इम्तिहां न हो।"