चाला, (दुष्कर्मों से घृणा करनेवाला ) और मनोरथों का पूर्ण करनेवाला है-
"ऐ जर तु खुदा नई घलेकिन वदा,
सन्तारो गुफरो काजी उल हाजाती।
हम भी कह सकते हैं कि मरने जीने, दुख-सुन और नर्क स्वर्ग की एक कुजी भगवती लक्ष्मी (जरे अब्दुस्साम) के हाथ में भी है। लोग कहते हैं-"जन (स्त्री) जमीन और जर, सव झगडे का घर, पर सच तो यह है कि जमीन तो जर ही का रूपान्तर है, और जन भी पेटभरों के अलवल है।
ठीक पूछो तो अनर्थ का मूल यही है। ब्रह्म देश के विषय में हमारी सरकार ने इतनी बदनामी और मुडधुन सहके इस बात को सिद्ध कर दिया कि रुपये के लिए बडेबड़ों की नियत 'डिग जाती है। वाप-बेटे, स्त्री पुरुप,भाई भाई में महा विरोध हो जाना इत्यादि अनर्थ लोग सहज कर डालते हैं। फिर "बाप पडा ना भाया, सय से बडा रुपय्या" में क्या सन्देह है। सौ अनर्थ फर डालो, एक आघ मंदिर यनवा डालो या भोजन करा दो, कोई कुछ न कहेगा, यरच चाहे सोकरो, मुद्दपर सव 'चुटको ही यजायेंगे। फिर सारे श्रीगुन छिपत हैं, लछमिनिया की ओट", कौन का डर है। इस दो अक्षर के शब्द से लोग ऐसा गिधे हैं कि जिससे कह दो, सो ना, (सोधो मत) देखो कैसा सीक पाव होता है, कोई तुम्हारा आश्रित है जो डर के मारे तुम्हारी आज्ञा मानेगा, पर कमी २ कोई २ भासा सुनके 'भीतरी भीतर पच जाता है, पर रात को कुछ काम देर तक करने के पीछे कह दीजिए-सोना, (सोरहो न) देपो कैसा मगन हो जायगा।
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