पृष्ठ:निबन्ध-नवनीत.djvu/७८

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मिडिल-क्लास।

जो लोग सचमुच विद्या के रसिक हैं उन्हें तो पम०ए। पास करके भी तृप्ति नहीं होती, क्योंकि विद्या का अमृत ऐस ही स्वादिष्ट है कि मरने के पीछे भी मिलता रहे तो अहो भाग्य पर जो लोग कुछ क, म, घ, सीसके पेट के धंधे से हा जाना ही इतिकर्तव्यता समझते हैं उनके लिए यह मिडिल भी ऐसी छत लगा दी गई है कि झींसा करें बरसो ! नहीं । इन विचारे दस २ रुपया की पिसौनी करनेवालो को क जहाज पर चढके जगज्जात्रा करने का समय मिलता जो जुगराफ़िया रटाई जाती है ? कौन दिल्ली और लखन के पाटशाह बैठे हैं जो अपने पूर्वजों का चरित्र सुनके स्थित श्रत यखूश देंगे, जो तवारीख में समय की हत्या ली जाती है साधारण नौकर को लिखना-पढना बोलना-चालना, हिसा किताय बहुन है । मिडिलवाले कोई प्रोफ़ेसर तो होते ही नई इन बेचारे पेटार्थियों को विद्या के बडे २ विपयों में श्रम करा मानों चींटी पर हाथी का हौदा रखना है | विचारे अपने ध से भी गए, बडे विद्वान भी न भए ! 'मिडल' शब्द का अर्थ है अधविच, अर्थात् आधे सरग, त्रिशक की भांति लटके रहे न इतके न उत के इससेतोसरकार की मशायी पाई जा है कि हिन्दुस्तानी लोग नौकरी की आशा छोडें, पर। गुलामी के श्रावियों को समझाने कौन ?

यदि प्रत्येक जाति के लोग अपने सन्तान कोमय के पहि निज व्यापार सिखलाया करें तो नौकरी पेशो से फिर. अच्छे रहें। इधर नौकरी की कमी रहने से सरकार भी यह हर छोड़ बैठे। जिनको स्यानेपन में पढ़ने की रुचि होगी घेण्या